वैज्ञानिक अनुसंधान क्या है – What is scientific research?

वैज्ञानिक अनुसंधान क्या है – What is Scientific Research?

वैज्ञानिक अनुसंधान वे हैं जो वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करते हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान को एक सरल प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें अवलोकन, प्रयोग और विश्लेषण के माध्यम से ज्ञान और समझ को प्राप्त करने की प्रक्रिया शामिल है। इसका उद्देश्य विश्वसनीय और विश्वसनीय जानकारी प्राप्त होती है, जो किसी विशेष क्षेत्र में मौजूदा ज्ञान के योगदान में सहायता प्रदान करती है। वैज्ञानिक अनुसंधान की प्रक्रिया में एक शोध प्रश्न तैयार करना, एक अध्ययन करना, डेटा का संग्रह और विश्लेषण करना, और कुछ बातों के आधार पर निष्कर्ष निकालना शामिल है।

वैज्ञानिक अनुसंधान के कुछ उदाहरण हैं:

प्रायोगिक अनुसंधान: प्रायोगिक अनुसंधान में अनुसंधानकर्ता किसी मानकीकृत परिवेश में किसी मानकीकृत परिवेश में किसी सम्मोहन का प्रभाव देखते हैं। उदाहरण के लिए, एक दवा के प्रभाव को जांचने के लिए, एक समूह को दवा दी जाती है और दूसरे समूह को placebo दी जाती है, और फिर उनके स्वास्थ्य परमाणु का तुलना की जाती है।

प्रस्तुति-परक अनुसंधान: प्रस्तुति-परक अनुसंधान में अनुसंधानकर्ता कोई सम्मोहन या हस्तक्षेप नहीं करते हैं, बल्कि समस्या, समुदाय, समूह, स्थल, समय, संस्था, संस्कृति, समुपलब्धि आदि का स्पष्टीकरण करते हैं। उदाहरण के लिए, एक जनसंख्या के विशेषताओं, व्यवहारों, रुचियों, मतों, मान्यताओं, आदि का सर्वेक्षण करना।

सहस्राब्दी पुराने प्रसिद्धि-पुरुषों अनुसंधान: सहस्राब्दी पुराने प्रसिद्धि-पुरुषों अनुसंधान में अनुसंधानकर्ता कोई सम्मोहन या हस्तक्षेप नहीं करते हैं, बल्कि दो या अधिक समुपलब्धि के बीच किसी सम्बन्ध को मापते हैं। उदाहरण के लिए, सिगरेट पीने और कैंसर होने के बीच किसी सम्बन्ध को पता लगाना।

प्रक्रिया-परक अनुसंधान: प्रक्रिया-परक अनुसंधान में अनुसंधानकर्ता किसी समुपलब्धि के पीछे के कारकों, प्रक्रियाओं, मॉडलों, सिद्धांतों, सूत्रों, मेकेनिजमों, सिस्टमों, आदि को समझने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, प्रकाश का प्रकीर्णन, DNA का प्रतिलिपि, मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया, etc.

प्रतिक्रिया-परक अनुसंधान: प्रतिक्रिया-परक अनुसंधान में अनुसंधानकर्ता किसी समुपलब्धि के परिणामों, प्रभावों, प्रतिक्रियाओं, परिवर्तनों, महत्व, मूल्य, etc.

गैर-वैज्ञानिक अनुसंधान वे हैं जो वैज्ञानिक विधि का उपयोग नहीं करते हैं। ये अनुसंधान परम्परा, व्यक्तिगत अनुभव, सहज ज्ञान, तर्क और प्रामाणिकता जैसी तकनीकों का उपयोग करते हैं।

गैर-वैज्ञानिक अनुसंधान के कुछ उदाहरण हैं:

इतिहास: इतिहास में अनुसंधानकर्ता समय की घटनाओं, व्यक्तियों, संस्थाओं और संस्कृतियों का अध्ययन करते हैं। इतिहास में प्रमाणों का संकलन, स्रोतों का मूल्यांकन, प्रमुख प्रश्नों का पता लगाना, प्रस्तुति करना और समीक्षा करना होता है।

कला: कला में अनुसंधानकर्ता सृजनात्मक प्रक्रियाओं, कलाकृतियों, समालोचना, समीक्षा, प्रेरणा, सम्प्रेषण, समुदाय, समाज, समकालीनता और महत्व के पहलुओं को समझने की कोशिश करते हैं। कला में प्रक्रिया-परक, प्रस्तुति-परक, प्रतिक्रिया-परक, समीक्षा-परक, समीक्षा-परक, समीक्षा-परक, समीक्षा-परक, समीक्षा-परक, समीक्षा-परक, समीक्षा-परक, समीक्षा-परक,

धर्म: धर्म में अनुसंधानकर्ता मानव के मौलिक प्रश्नों, मूल्यों, मतों, प्रथाओं, प्रतीकों, सहस्राब्दी पुराने प्रसिद्धि-पुरुषों, प्रेरित ग्रंथों और परंपराओं और व्यक्तियों और समाजों पर उनके प्रभाव से संबंधित हैं। धर्म अनुसंधान में धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं का ऐतिहासिक विश्लेषण शामिल है; वास्तविकता की प्रकृति में दार्शनिक जांच; नैतिक मुद्दों पर नैतिक प्रतिबिंब; और विभिन्न धार्मिक परंपराओं और आंदोलनों का तुलनात्मक अध्ययन।

व्यक्तिगत अनुभव: व्यक्तिगत अनुभव से प्राप्त ज्ञान और सत्य वे हैं जो किसी ने स्वयं महसूस किए हों। इसमें कोई प्रमाण, परीक्षण, सत्यापन या समर्थन नहीं होता है। उदाहरण के लिए, किसी का सपना, भावना, आकांक्षा, भ्रम, संकेत, आत्म-साक्षात्कार, आत्म-उपचार, आत्म-अनुसंधान, आत्म-प्रेरणा, आत्म-सहायता, आत्म-शिक्षा, आत्म-समर्थन, आत्म-प्रकाशन, आत्म-प्रकाशन, etc.

सहज ज्ञान: सहज ज्ञान से प्राप्त ज्ञान और सत्य वे हैं जो किसी को पेट में महसूस होते हैं। इसमें कोई कारण, प्रमाण, समझ, समीकरण या समर्थन नहीं होता है। उदाहरण के लिए, किसी का प्रेम, प्रेरणा, संवेदना, प्रतिभा, सौभाग्य, मिलनसार, etc.

 

वैज्ञानिक अनुसंधान से समाज को कुछ फायदे मिलते हैं:

फायदे:

वैज्ञानिक अनुसंधान अनुभवी प्रमाण पर आधारित होता है।

वैज्ञानिक अनुसंधान सत्य और सत्यापन का प्रमाण होता है।

वैज्ञानिक अनुसंधान तर्क और प्रत्यक्षीकरण से प्राप्त होता है।

वैज्ञानिक अनुसंधान सत्य को पाने में विश्वसनीय होता है।

वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ता निष्पक्ष होते हैं।

वैज्ञानिक अनुसंधान सतर्क होता है, समर्थित सिद्धांतों के साथ।

वैज्ञानिक अनुसंधान से नए प्रौद्योगिकी, समस्या-निवारण, और सूचित-निर्णय का विकास होता है।

वैज्ञानिक अनुसंधान से पुनरुत्पन्न और समंजस परिणाम मिलते हैं।

वैज्ञानिक अनुसंधान से महत्वपूर्ण क्षेत्रों, जैसे मेडिसिन, केमिस्ट्री, प्रक्रति, etc., में महत्वपूर्ण प्रगति होती है।

 

वैज्ञानिक अनुसंधान से समाज को कुछ नुकसान भी है:

नुकसान:

वैज्ञानिक अनुसंधान महंगा और कीमती होता है।

वैज्ञानिक अनुसंधान में कोलमल या कपट की संभावना होती है, जो परिणामों को प्रति-प्रमेय या प्रति-प्रमेय कर सकती है।

वैज्ञानिक अनुसंधान में आंतरिक या बाहरी प्रभावों का असर हो सकता है, जो परिणामों को बदल सकते हैं।

वैज्ञानिक अनुसंधान में प्रत्यक्षीकरण से दूरी होती है, जो हमें वास्तविकता से दूर करती है।

वैज्ञानिक अनुसंधान में प्रति-प्रमेय की समस्या हो सकती है, जो परिणामों की प्रमाणीकरण को कमजोर करती है।

वैज्ञानिक अनुसंधान में पूर्ण ज्ञान की कमी होती है, और संभावना के साथ संभावना के साथ काम करना पड़ता है।

वैज्ञानिक अनुसंधान में मनुष्य के महत्व, मूल्य, मत, संस्कृति, etc., को उपेक्षित किया जा सकता है, और सहस्राब्दी पुराने प्रसिद्धि-पुरुषों को कारण-प्रेरित माना जा सकता है।

वैज्ञानिक अनुसंधान के कितने चरण होते हैं:

वैज्ञानिक अनुसंधान के चरणों की संख्या विभिन्न स्रोतों में भिन्न-भिन्न हो सकती है, लेकिन सामान्य रूप से इन्हें पांच से सात तक माना जाता है। वैज्ञानिक अनुसंधान के प्रमुख 6 चरण ये हैं:

  1. समस्या की पहचान – इसमें अनुसंधानकर्ता को अपने क्षेत्र और विषय का चयन करना होता है, और उसकी पृष्ठभूमि, परिभाषा, महत्व, सीमाएं, आदि को स्पष्ट करना होता है।साहित्य समीक्षा – इसमें अनुसंधानकर्ता को
  2. पहले से मौजूद सम्बन्धित पुस्तकें, पत्रिकाएं, रिपोर्टें, आदि को पढ़ना, समझना, मूल्यांकन करना, और संक्षेप में प्रस्तुत करना होता है।
  3. परिकल्पना का निरूपण – इसमें अनुसंधानकर्ता को अपनी समस्या के समाधान के लिए एक संभावित प्रतिक्रिया को प्रस्तुत करना होता है, जो प्रयोग से परीक्षित हो सकती है।
  4. प्रयोग – इसमें अनुसंधानकर्ता को प्रतिक्रिया की पुष्टि के लिए प्रासंगिक मापक को पहचानना, मापना, मेंहत करना, और मुकाबले करना होता है।
  5. डेटा संकलन – इसमें अनुसंधानकर्ता को प्रयोग से प्राप्त मूल आंकड़े को संकलित, संरक्षित, संप्रेषित, और प्रस्तुत करना होता है।
  6. डेटा विश्लेषण – इसमें अनुसंधानकर्ता को प्राप्त आंकड़ों को विभिन्न विधियों से विश्लेषित, व्याख्यात, और अर्थपूर्ण करना होता है।

निष्कर्ष – इसमें अनुसंधानकर्ता को अपनी प्रतिक्रिया को सत्यापित, खारिज, या संशोधित करना होता है, और अपने प्रयोग के परिणाम, सीमाएं, सुझाव, और आगे के अनुसंधान की संभावनाओं को प्रकट करना होता है।